ये रिश्ता क्या कहलाता है में नज़र आ रहीं अभिनेत्री समृद्धि शुक्ला बताती हैं कि आज की पीढ़ी की खरीदारी की आदतें पहले से बहुत बदल चुकी हैं।
समृद्धि कहती हैं, “आजकल ऐसा लगता है जैसे हमें हमारी जरूरत से ज़्यादा खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। हर जगह कोई न कोई नया प्रोडक्ट दिखाई देता है और ऐसा महसूस कराया जाता है कि इसे लेने से जिंदगी बेहतर हो जाएगी। आज की तेज़ जिंदगी में लोग सोचने का समय ही नहीं लेते और खरीद लेते हैं।”
उनके अनुसार, इस वजह से ज़रूरत और इच्छा में फर्क समझना मुश्किल हो जाता है। सोशल मीडिया की भूमिका पर वह मुस्कुराती हैं और कहती हैं,
“सोशल मीडिया ने तो खरीदारी का तरीका ही बदल दिया है। पहले हम किसी चीज़ का विज्ञापन देखकर भूल जाते थे। अब वही चीज़ दिन में दस बार फोन पर दिखती है। और जब कोई इन्फ्लुएंसर उसे इस्तेमाल करता दिखता है, तो लोगों को उस पर भरोसा हो जाता है।”
वह मानती हैं कि बार-बार एक ही चीज़ देखने से लोगों में तुरंत खरीदने की इच्छा पैदा होती है, जिससे खर्च बढ़ जाता है।
समृद्धि इस आदत के भावनात्मक प्रभाव पर भी बात करती हैं। “कुछ खरीदने से थोड़ी देर के लिए खुशी मिलती है, लेकिन वो जल्दी खत्म हो जाती है। फिर लोग फिर कुछ नया खरीदकर उस खालीपन को भरने की कोशिश करते हैं। धीरे-धीरे लोग अपनी कीमत चीज़ों से जोड़ने लगते हैं, और ये मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है।”
समाधान के लिए वह एक सरल तरीका सुझाती हैं: “अगर कुछ खरीदने का मन हो, तो पहले एक दिन रुककर सोचें—‘क्या सच में इसकी जरूरत है?’ अगर एक दिन बाद भी वही इच्छा हो, तो शायद उसका मतलब है।”
पर्यावरण के नुकसान पर वह चिंतित हैं। “तेजी से खरीदना और जल्दी फेंक देना—यह आदत हमारे ग्रह को नुकसान पहुंचा रही है। इतना कचरा देखकर डर लगता है। अगर हम अभी नहीं रुके, तो नुकसान संभालना मुश्किल हो जाएगा।”
वह कहती हैं कि समाधान मिनिमलिज़्म में हो सकता है। “कम चीज़ों में भी जिंदगी खूबसूरत हो सकती है। बस शुरुआत छोटी होनी चाहिए—जैसे बिना सोचे समझे खरीदारी से बचना।”
अंत में वह उम्मीद जाहिर करती हैं: “अगर हम बच्चों और युवाओं को समझदारी से खरीदने और पर्यावरण का ख्याल रखने की आदत सिखाएं, तो वे आने वाले समय में बेहतर फैसले लेंगे। नई पीढ़ी सीखने में तेज है—बस सही दिशा चाहिए।”